खबर वाहिनी न्यूज ब्यूरो
राजनितिक लेख : Adv. संग्राम सिंह राणा (अधिवक्ता व राजनितिक विचारक)
हरियाणा मे सत्ता और राजनीति का केंद्र 2014 से पहले हमेशा कांग्रेस और चौधरी देवीलाल के परिवार के बीच मे केंद्रित रहा, कांग्रेस को, ज्यादातर चौधरी बंसी लाल,चौधरी भजनलाल और चौधरी देवीलाल की पार्टी को चौधरी देवीलाल का परिवार नेतृत्व करता रहा, जहाँ कांग्रेस गैर जाट की पार्टी कही जाती थी तो चौधरी देवीलाल का परिवार जाट राजनीति का प्रतिनिधित्व करता था.
हरियाणा की राजनीति मे पहला मोड 2005 मे आया जब कांग्रेस ने चौधरी भजनलाल के दम पर 65 सीट जीतकर चौधरी भजनलाल की जगह भूपेंद्र हुड्डा को मुख्यमंत्री बना दिया और यही से हरियाणा मे शुद्ध जाट और गैर जाट राजनीति का उदय होना शुरू हुआ, इससे पहले हरियाणा मे जाट और गैर जाट राजनीति इतनी हावी नहीं थी और जनता जाति से उप्पर उठकर कांग्रेस और चौधरी देवीलाल के परिवार को वोट देकर सत्ता सौपती रही, 2014 से पहले बीजेपी का हरियाणा मे कोई ज्यादा बड़ा कद नहीं था लेकिन कांग्रेस और भूपेंद्र हुड्डा द्वारा 2013 मे जाट राजनीति पर कब्जा करने के मकसद से चौधरी ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को जेल जाने के बाद से हरियाणा मे जनता और विशेष कर जाट समुदाय ने भूपेंद्र हुड्डा और कांग्रेस को पूरी तरह नकार कर 2014 के विधानसभा चुनाव मे 15 सीट तक सीमित कर दिया.
चौटाला परिवार के राजनीति मे मजबूत ना होने और पीएम नरेन्द्र मोदी की जबरदस्त हवा और भूपेंद्र हुड्डा की खुलेआम जातिवाद की राजनीति ने बीजेपी के रूप मे हरियाणा की जनता ने नया विकल्प चुन लिया और भूपेंद्र हुड्डा और कांग्रेस की राजनीति को हाशिये पर ला दिया. उस वक़्त कांग्रेस पार्टी ने अपने युवा तुर्क डॉ अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर हरियाणा कांग्रेस की कमान सौंपी, 2014 से 2019 तक डॉ अशोक तंवर ने जमीनी स्तर पर मेहनत करके, आम जनता से जुड़कर काफ़ी हद तक भूपेंद्र हुड्डा की कांग्रेस को केवल जाट समुदाय तक सीमित करने की रणनीति को खत्म करके फिर से सभी जाति और वर्गो की पार्टी मे बदल दिया.
लेकिन जाट राजनीति पर एकछत्र राज करने की मंशा से चल रहे भूपेंद्र हुड्डा के कारण हरियाणा मे बिना जरूरत के भी जाट आरक्षण आंदोलन हुआ जिसमे निर्दोष युवाओं की बलि चढ़ी और उससे भूपेंद्र हुड्डा जाट समुदाय के ज्यादातर हिस्से को अपनी तरफ जोड़ने मे जरूर सफल रहे लेकिन उसकी वजह से हरियाणा मे पंचायत स्तर तक राजनीति शुद्ध रूप से जाट और गैर जाट मे बदल गई, लेकिन 2019 तक डॉ अशोक तंवर कांग्रेस पार्टी मे एससी और गैर जाट नेता के रूप मे मजबूत होकर मुख्य चेहरा बन चुके थे जिससे भूपेंद्र हुड्डा कांग्रेस पार्टी छोड़ने की कगार पर पहुंच गये थे.
अपने आस्तित्व को बचाने के लिए भूपेंद्र हुड्डा उस समय के कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद आदि से मिलकर कांग्रेस हाई कमान को ब्लैकमेल करके डॉ अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हटाने मे सफल जरूर रहे लेकिन डॉ अशोक तंवर के साथ भूपेंद्र हुड्डा और कॉंग्रेस के व्यवहार ने हरियाणा के एससी समुदाय और गैर जाट जनता मे रोष भर दिया और डॉ अशोक तंवर के चेहरे और मेहनत की वजह से 2019 मे जो कांग्रेस सत्ता पर काबिज होने की कगार पर ख़डी थी, उसे और भूपेंद्र हुड्डा को जनता ने नकार कर फिर से बीजेपी को सत्ता सौंप दी तो डॉ अशोक तंवर की उस वक़्त कांग्रेस और भूपेंद्र हुड्डा की खिलाफत और नई नवेली जजपा का साथ देने से जजपा को दस सीट हासिल हुई.
2019 के बाद भूपेंद्र हुड्डा अपने घर और जाट समुदाय की राजनीति तक सीमित हो गये और कांग्रेस की बजाए अपने बेटे को मजबूत करने के लिए व्यक्तिगत राजनीति का खेल खेलने लगे लेकिन डॉ अशोक तंवर कांग्रेस छोड़ने के बाद घर पर नहीं बैठे और अपनी पूरे हरियाणा की सारी टीम को साथ जोड़े रखा और जनता के बीच मे रहकर मजबूत होते रहे, 2019 से 2024 तक भूपेंद्र हुड्डा ने जाट समुदाय की राजनीति पर कब्जा करने के लिए चौधरी देवीलाल परिवार और दुष्यंत चौटाला को राजनैतिक रूप से खत्म करने के लिए किसान आंदोलन, महिला पहलवान आंदोलन आदि का सहारा लिया तो दूसरी तरफ अन्य जाट नेताओं रणदीप सुरजेवाला, चौधरी वीरेंद्र सिंह आदि को खत्म करने पर लगे रहे लेकिन दूसरी तरफ डॉ अशोक तंवर अपना भारत मोर्चा, TMC, आम आदमी पार्टी के मंच के माध्यम से हरियाणा के हर कोने मे अपनी टीम के साथ मजबूत होने पर लगे रहे जिसकी वजह से आज भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा के कुछ जाट बहुल्य हल्को और जाट समुदाय की राजनीति तक सीमित होकर रह गये तो डॉ अशोक तंवर हरियाणा के 90 हल्को मे ना केवल एससी समुदाय के बल्कि गैर जाट नेता के रूप मे मजबूत होकर उभरे.
यही कारण है की बीजेपी ने 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावो के लिए डॉ अशोक तंवर की कीमत को पहचाना और देश की राजनीति मे अपनी रणनीति से तेजी से फेल हो रही आम आदमी पार्टी से डॉ अशोक तंवर को छीन लिया, बीजेपी के पास उत्तर हरियाणा मे बड़े चेहरे का ना कोई दलित नेता है और ना ही कोई मुख्यमंत्री, इस कारण बीजेपी जैसी पार्टी जो हीरे की पहचान भी करना जानती है और उसे तराशना भी, साफ और ईमानदार छवि के डॉ अशोक तंवर को उत्तर भारत मे दलित नेता के रूप मे तराश कर एससी समुदाय मे मजबूत हो सकती है जिससे कम से कम हरियाणा मे अगले दस साल बीजेपी को हराना ना तो भूपेंद्र हुड्डा के वश मे होगा ना कांग्रेस के, इस कारण बीजेपी का डॉ अशोक तंवर को अपने साथ जोड़ना हरियाणा सहित उत्तर भारत मे बीजेपी को मजबूत करने वाला बीजेपी का एक दूरगामी राजनैतिक रणनीति का महत्वपूर्ण कदम कहलायेगा.