सरिता जी मुम्बई में एक कालोनी में घर में अकेले ही रहती थी। उनके बेटा बहू विदेश में रहते थे और बेटी की शादी बनारस में की थी,जो अक्सर गर्मी की छुट्टी होने पर ही उनके पास आ पाती थी। राधा नाम की बाई 10 वर्षों से सुबह शाम सरिता जी के यहां काम करने आया करती थी ।
सरिता जी और राधा का इतने वर्षों में बहुत अच्छा रिश्ता बन गया था । राधा सरिता जी को मां की तरह ही मानती थी और घर के कामों के अलावा उनकी देखभाल भी करती थी। कभी-कभी यदि सरिता जी के पैरों में दर्द होता तो वह दवा लगा देती थी या फिर सर दर्द होता तो वह सिर में तेल भी लगा देती थी ।
राधा को यदि किसी कारणवश छुट्टी लेनी पड़ती थी तो वह सरिता जी के यहां कोई दूसरी काम वाली की व्यवस्था करके जाती थी । सरिता जी भी राधा को अपने मन से तीज त्योंहार आने पर कुछ मिठाई या राधा की जरूरत का थोड़ा बहुत समान भी दे दिया करते थी।
एक दिन की बात है राधा काम पर आई तो उसने सरिता जी से बोला, मेम साहब ! कल बिटिया दामाद अपने बच्चे के साथ पहली बार घर आ रही है , रविवार है इसलिए कोई भी कामवाली नहीं आ पाएगी, क्या मैं कल एक टाइम का काम करके चली जाऊं ? ” सरिता जी ने बिना रुके हां बोल दिया । राधा अरे ये तो बड़ी खुशी की बात है। आगे सरिता जी बोली, ” कोई बात नहीं है राधा कल का काम मैं देख लूंगी, तू आज ही जल्दी-जल्दी सारा आज का काम करके घर चली जा, और सुन ये ले ₹500 और मेरे पास एक सलवार सूट भी रखा है । वो बिटिया को देना और दामाद व नाती के लिए मिठाई खरीद लेना । राधा की खुशी का ठिकाना नहीं था, थैंक यू मेम साहब !बोलकर राधा सरिता जी के चरणों में गिर गई । सरिता जी ने राधा को उठाया और गले से लगाया ।
प्यार सिर्फ अपनों तक सीमित नहीं हैं, निःस्वार्थ भाव से सच्चा प्यार देने वालों से स्वयं ही हो जाता है । कहते हैं ना कि जिसका साफ दिल होता है उसके लिए भगवान ने कहीं ना कहीं कोई प्यार करने वाला बनाया ही होता है । प्यार के रंग हजार है, प्यार भेदभाव, अपना -पराया, अमीरी-गरीबी नहीं देखता। प्यार उसी दिल को अपनाता है जिसका दिल स्वयं प्यार लूटाने वाला होता है ।
खबर वाहिनी हेतु स्वरचित रहना
मोनिका डागा “आनंद” चेन्नई ,तमिलनाडु