नई दिल्ली. ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरला स्टोरी’ के बाद ‘अजमेर 92’ फिल्म को लेकर विवाद शुरू हो गया है. यह फिल्म सच्ची घटना से प्रेरित है. इस फिल्म में अजमेर दरगाह कांड या अजमेर रेप कांड का सच दिखाए जाने की बात है. अजमेर रेप कांड में 100 से ज्यादा लड़कियां इसकी शिकार हुई थी. साल 1992 में अजमेर रेप कांड का खुलासा दैनिक नवज्योति के साथ क्राइम रिपोर्टर रहे संतोष गुप्ता ने किया था. इस घटना के बाद कई लड़कियों ने आत्महत्या भी की जबकि खुलासा करने वाले एक अन्य पत्रकार की हत्या भी कर दी गई. पुष्पेंद्र सिंह के निर्देशन में बनी यह फिल्म 14 जुलाई को रिलीज हो रही है. IMBD पर इसका पोस्टर जारी किया जा चुका है. जिसमें 250 लड़कियों की ब्लैकमेलिंग की खबर की कटिंग दिख रही है. इस मामले में ज्यादातर आरोपी मुस्लिम थे जबकि पीड़ित लड़कियां हिन्दू. जमियत उलेमा-ए-हिंद ने इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. इसके अध्यक्ष महदूद मदनी ने कहा कि इस फिल्म से समाज में दरार पैदा होगी.
क्या है ‘1992 अजमेर कांड’
अजमेर रेप कांड का खुलासा साल 1992 में एक अखबार के माध्यम से हुआ. उस समय राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत की सरकार थी. वहीं, मुख्य दो आरोपी युवा कांग्रेस से तालुक रखते थे. द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, इसके मुख्य आरोपी अजमेर दरगाह के केयरटेकर यानी खादिमों के परिवार से आने वाले नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती थे. उस समय दोनों युवा कांग्रेस में पदाधिकारी भी थे. इन दोनों के गैंग ने सोफिया स्कूल और सावित्री स्कूल में जाने वाली लड़कियों को पहले अपने रसूख से जाल में फंसाया. इसके बाद रेप, ब्लैकमेलिंग, जान से मारने की धमकी का खेल शुरू हुआ.
नफीस-फारुक अपने गुर्गे के साथ पहले लड़कियों को यौन शोषण करते थे. फिर उनकी न्यूड और आपत्तिजनक तस्वीरें खींच हर समय ब्लैकमेल करते थे. एक शिकार हुई लड़की पर दूसरों को लाने का भी दबाव बनाया था. इसके अलावा लड़कियों को अन्य रसूखदार लोगों के पास भी भेजा जाने लगा. फोटो लेते वक्त लड़कियों से उन्हें निगेटिव रील देने का वायदा किया जाता था. लेकिन बाद में आरोपी मुकर जाते थे. इन सब के बीच जब इस खबर का खुलासा हुआ तो स्थानीय पत्रकारों ने तस्वीर धुंधली कर अखबार में फोटो छाप दिए. कुछ लड़कियों ने इसी दौरान पुलिस से निगेटिव रील वापस पाने के लिए मदद मांगी. लेकिन आरोपियों को इसकी खबर मिलने उन्होंने पूरे शहर में तस्वीर बांटने की धमकी दी.
मुकदमे का क्या हुआ?
इस मामले में पहली चार्जशीट सितंबर 1992 में फाइल हुई. पहले चार्जशीट में 8 आरोपियों के नाम थे. बाद में 10 और लोगों पर आरोप तय किए गए. शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाएं लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही से मुकर गईं. साल 1998 में अजमेर की एक अदालत ने 8 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने साल 2001 में चार को बरी कर दिया. 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चार की सजा उम्रकैद से घटाकर 10 वर्ष की कर दी.
साल 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को दोषी ठहराया, लेकिन चिश्ती ने खुद को दिमागी तौर पर पागल घोषित करवा लिया था. साल 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटा दी और कहा कि वह पर्याप्त समय जेल में काट चुका है. नफीस और फारुक चिश्ती आज भी पूरी शान से अजमेर में रहते हैं.
फिल्म का स्टारकास्ट
इस फिल्म को पुष्पेन्द्र सिंह ने डायरेक्ट किया है. इसकी कहानी सूरज पाल रजक, ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह और पुष्पेंद्र सिंह ने लिखी है. फिल्म में करण वर्मा, सुमित सिंह, राजेश शर्मा, ईशान मिश्रा, अनूप गौतम, मनोज जोशी, शहनवाज खान, सयाजी शिंदे जैसे कलाकार हैं. वहीं उमेश कुमार तिवारी ने इसे प्रोड्यूस किया है.
इस मामले में पहली चार्जशीट सितंबर 1992 में फाइल हुई. पहले चार्जशीट में 8 आरोपियों के नाम थे. बाद में 10 और लोगों पर आरोप तय किए गए. शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाएं लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही से मुकर गईं. साल 1998 में अजमेर की एक अदालत ने 8 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने साल 2001 में चार को बरी कर दिया. 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चार की सजा उम्रकैद से घटाकर 10 वर्ष की कर दी.
साल 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को दोषी ठहराया, लेकिन चिश्ती ने खुद को दिमागी तौर पर पागल घोषित करवा लिया था. साल 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटा दी और कहा कि वह पर्याप्त समय जेल में काट चुका है. नफीस और फारुक चिश्ती आज भी पूरी शान से अजमेर में रहते हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 07, 2023, 15:47 IST