
मां, एक एहसास जिसे सब ने अपने
जीवन में महसूस किया ही होगा ना
मां का गुस्सा, प्यार,रूठना
और फिर खुद ही से उनका मान
जाना सब ने देखा ही होगा ना
समझ नहीं आता कि किस
मिट्टी से बनी होती है ये मां
अपना छोड़ बाकी सब के
लिए जीती है ये मां
बच्चों का जीवन बनाने में खुद
को भी सवारना भूल जाती है मां
ऑफिस देख आईने में खुद को
अपना अस्तित्व ही भूल जाती है मां
वैसे तो बच्चों को खुद का
दोस्त बताती है ये मां
पर फिर अपनी ही परेशानियों को
क्यों हम बच्चों से छुपाती है ये मां
सोचा कभी जीकर भी देखूं
मां के इस किरदार को मैं
जब निभाया तो पाया मैंने
ईश्वर को ही मां के अहसास में
- डॉ.सारिका ठाकुर ” जागृति “
