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कविता, शीर्षक : चीरहरण

द्रौपदी का हो रहा चीर हरण
मौन है,समस्त भीष्म,विदुर, द्रोण
कवेल राजा ही था नेत्र हीन
या पूरा साम्रज्य बना था पाषाण,
लगाई पुकार  बोली  कृष्णा  
“हे गोविन्द! हे मुरारे! हे कृष्ण!
आप बढ़ायो चीर किया परित्राण
भगिनी  की लाज राखी उसी क्षण 
आर्य पुत्र थे केवल बने थे प्रमाण
द्यूत-क्रीड़ा में नारी का हाल कहता पुराण,
दु:शासन की  दुष्टता का यह है सचित्रप्रमाण
गर हो रहा संसार में अमंगल, अकल्याण,
आएंगे किसी अवतार में श्रीराम-श्रीकृष्ण
पाप कर्ता,कर्ण हो या हो विकर्ण
अन्याय का हो अंत, यह है सत्य का प्रमाण
छल हो भी बलवान, धर्म का होगा निमार्ण 
जब तक जीव है  आवे ईश्वर के शरण

खबर वाहिनी न्यूज पोर्टल हेतु स्वरचित रचना
वर्षा शिवांशिका
कुवैत

लेखिका : वर्षा शिवांशिका, कुवैत

Khabar Vahini
Author: Khabar Vahini

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